नीलकंठ : पराजय का विष और शिव-
भारतीय संस्कृति के जिज्ञासुओं को संजय त्रिपाठी की पुस्तक 'नीलकंठ' जरुर पढ़ी चाहिए.
विशाल पौराणिक कथा महासागर से संचित भारतीय सांस्कृतिक साहित्य को कई उदीयमान लेखकों द्वारा औपन्यासिक लेखन में परिवर्तित करने का प्रयास चल निकला है। इस सिलसिले में कई लेखकों की पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। वर्तमान में मध्य प्रदेश में लोकसेवक के पद पर सेवारत संजय त्रिपाठी ने भी इस क्षेत्र में सफल लेखन किया है। यह पुस्तक लेखक ने अपनी पत्नी मंजुल त्रिपाठी के सहयोग से लिखी है।
'मेरा राम मेरा देश' और 'मथुरा ईश' की सफलता के बाद संजय त्रिपाठी की यह तीसरी
किताब है।
संजय त्रिपाठी की पुस्तक 'नीलकंठ : पराजय का विष और शिव' यह पौराणिक इतिहास पर हिन्दुओं के त्रिदेवों में सबसे अधिक लोकप्रिय 'महादेव' अर्थात् शिवजी की महानता पर लिखा उपन्यास है। लेखक ने बहुत ही कलात्मक लेखन शैली के जरिये इस उपन्यास में आर्य-द्रविड़ तथा देवासुर संघर्ष की कथाओं को जोड़कर भारतीय सांस्कृतिक एकता में भगवान शिव की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला है जिसमें उन्होंने काल्पनिक वार्तालाप को सजीवता के साथ मौलिक कलेवर में पेश करने का सफल प्रयास किया है।
'मेरा राम मेरा देश' और 'मथुरा ईश' की सफलता के बाद संजय त्रिपाठी की यह तीसरी
किताब है।
संजय त्रिपाठी की पुस्तक 'नीलकंठ : पराजय का विष और शिव' यह पौराणिक इतिहास पर हिन्दुओं के त्रिदेवों में सबसे अधिक लोकप्रिय 'महादेव' अर्थात् शिवजी की महानता पर लिखा उपन्यास है। लेखक ने बहुत ही कलात्मक लेखन शैली के जरिये इस उपन्यास में आर्य-द्रविड़ तथा देवासुर संघर्ष की कथाओं को जोड़कर भारतीय सांस्कृतिक एकता में भगवान शिव की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला है जिसमें उन्होंने काल्पनिक वार्तालाप को सजीवता के साथ मौलिक कलेवर में पेश करने का सफल प्रयास किया है।
आर्यों और द्रविड़ों के बीच अस्तित्व की लड़ाई में आर्यों का नेतृत्व उनके युवा नायक विष्णु कर रहे थे तो द्रविड़ों की ओर से शिव के हाथ कमान थी। युद्ध लंबा चला जिसमें आखिरकार आर्यों की जीत हुई.
संजय त्रिपाठी की यह पुस्तक बेहद रोचक है। भारतीय संस्कृति के जिज्ञासुओं को यह पुस्तक जरुर पढ़ी चाहिए।
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